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Wednesday, December 18, 2013

ज़रा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है
ना जाने सब्र का धागा कहाँ पर टूट जाता है
किसे हमराह कहते हो यहाँ पर अपना साया भी
कहीं पर साथ चलता है कहीं पर छूट जाता है
गनीमत है नगर वालों लुटेरों से लुटे हो तुम
हमें तो गाँव में अक्सर दरोगा लूट जाता है
अजब शै है ये रिश्ते भी, बहुत मजबूत लगते हैं
ज़रा सी भूल से लेकिन भरोसा टूट जाता है

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ग़ज़ल

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